संसद में कृषि विधेयकों पर शिरोमणि अकाली दल ने बीजेपी का साथ छोड़ा

संसद में कृषि विधेयकों पर शिरोमणि अकाली दल ने बीजेपी का साथ छोड़ा


संजय रोकड़े




केंद्र सरकार में शामिल होने के बावजूद शिरोमणि अकाली दल ने संसद में कृषि विधेयकों के खिलाफ जाने का फैसला किया है


केंद्र सरकार में शामिल शिरोमणि अकाली दल ने संसद में कृषि विधेयकों का विरोध करने का फैसला किया है. पार्टी ने राज्य सभा में इन विधेयकों के खिलाफ वोटिंग के लिए अपने सांसदों को व्हिप जारी किया है. अभी ऊपरी सदन में इसके तीन सदस्य-नरेश गुजराल, बलविंदर सिंह भुंडर और सुखदेव सिंह ढींगरा हैं.


दरअसल, शिरोमणि अकाली दल ने सरकार से किसानों की आशंकाओं को दूर कर लेने तक कृषि अध्यादेशों की जगह लेने वाले कृषि विधेयकों को संसद में न पेश करने के लिए कहा था. लेकिन सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया और मानसून सत्र के पहले ही दिन विधेयकों को पेश कर दिया.


इस बीच पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान और तेलंगाना में किसानों का विरोध तेज हो गया है. पंजाब के किसानों ने इस पर तीखी नाराजगी जताई है. इसे देखते हुए शिरोमणि अकाली दल ने कृषि विधेयकों पर अपने रुख को कड़ा कर लिया है. बुधवार को पार्टी प्रमुख सुखवीर सिंह बादल ने कहा, ‘इन विधेयकों को पेश करने से पहले कम से कम उन पार्टियों से तो बात करनी ही चाहिए थी, जो वास्तव में किसानों की पार्टी और सहयोगी हैं. जब इस मामले को कैबिनेट में लाया गया था, तब भी हमारी मंत्री, हरसिरमरत कौर, ने इस पर अपना ऐतराज जताया था.’ उन्होंने जोर देकर कहा कि उनकी पार्टी किसानों के हितों को बचाने के लिए कोई भी बलिदान देने के लिए तैयार है.


शिरोमणि अकाली दल  मंगलवार को लोक सभा में आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक के खिलाफ मतदान कर चुकी है.  इस पर चर्चा में भाग लेते हुए फिरोजपुर से लोक सभा सांसद सुखबीर सिंह बादल ने कहा था, ‘किसानों की पार्टी होने के नाते अकाली दल ऐसी किसी चीज का समर्थन नहीं कर सकती है जो देश के अन्नदाताओं के खिलाफ है, खास तौर पर पंजाब के. इसलिए आज लोक सभा में आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक-2020 का विरोध करते हैं.’


केंद्र सरकार 5 जून को कृषि से जुड़े तीनों अध्यादेशों को लाई थी.


इसमें कृषि उत्पाद मंडी समिति कानून यानी एपीएमसी एक्ट को मंडी परिसर तक सीमित करने, कॉन्ट्रेक्ट फॉर्मिंग को मंजूरी और आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत कृषि उत्पादों के लिए स्टॉक लिमिट की शर्त को हटाने के अध्यादेश शामिल थे. केंद्र सरकार के इस कदम पर किसानों, आढ़तियों, मंडी कर्मचारियों और राज्य सरकारों ने गंभीर सवाल उठाए हैं.


किसान का आरोप है कि सरकार इन विधेयकों के जरिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर फसलों की खरीद से पीछे हटने और कृषि क्षेत्र को कार्पोरेट्स के हवाले करने की दिशा में कदम बढ़ा रही है. उनका कहना है कि सरकार ने नए अध्यादेश से निजी मंडियों को टैक्स से छूट दी है, जबकि एपीएमसी एक्ट के तहत पहले से काम कर रही मंडियों में टैक्ट लगता है, ऐसे में एपीएमसी मंडियां इन नई मंडियों का सामना नहीं कर पाएंगी.


किसानों की आशंका है कि जब एक दिन एपीएमसी मंडियां खत्म हो जाएंगी, तब सरकार अनाज खरीदने की व्यवस्था न होने की दलील देकर फसलों को एमएसपी पर खरीदने से इनकार कर देगी. किसान इसके लिए मध्य प्रदेश का उदाहरण देते हैं. यहां की शिवराज सरकार ने इस साल यह कहते हुए मूंग की खरीद करने से इनकार कर दिया कि उसके गोदाम खाली नहीं है, उसमें गेहूं भरा है. अपनी ऐसी ही आशंकाओं को दूर करने के लिए किसान सरकार से फसलों की एमएसपी पर खरीद की गारंटी देने वाला कानून बनाने की मांग कर रहे हैं.